सादर जय जिनेन्द्र!

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DEEKSHA KE PAL - GYAN SAGAR JI

Acharya Shri Gyan Sagar Ji Maharaj | सराकोद्धारक श्री 108 ज्ञान सागर जी महाराज (छाणी)

आचार्य श्री 108 ज्ञान सागर जी महाराज – सराको के राम – JAIN DHARM | ALL ABOUT JAINISM | JAINDHARM.IN Acharya Shri Gyan Sagar Ji Maharaj | सराकोद्धारक श्री 108 ज्ञान सागर जी महाराज (छाणी) जिनका व्यक्तित्व हिमालय से ऊँचा है और सागर से भी गहरा है ऐसे विराट ह्रदय में समाने वाले आचार्य श्री 108…

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JAIN SYMBOL | JAINDHARM.IN

समाधि-भावना | Samadhi Bhawana

दिन रात मेरे स्वामी, मैं भावना ये भाऊँ,
देहांत के समय में, तुमको न भूल जाऊँ । टेक।
शत्रु अगर कोई हो, संतुष्ट उनको कर दूँ,
समता का भाव धर कर, सबसे क्षमा कराऊँ ।१।

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विक्की पहाड़े जैन को भावभीनी श्रद्धांजलि

🇮🇳 भारत देश के सपूत मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के लाल, नोनिया-कर्बल निवासी जवान – कॉरपोरल विक्की पहाड़े जैन को भावभीनी श्रद्धांजलि 😔 🇮🇳 वायुसेना के काफ़िले पर आतंकी हमले में हुए शहीद❗ 🇮🇳 देश के वीर जवान विक्की पहाड़े जैन अपने पीछे पाँच साल का बेटा पत्नी समेत अपना हरा भरा परिवार को छोड़…

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रात्रि भोजन त्याग

आयुर्वेद के अनुसार सूर्य के निकलने की दशा में पेट में पाचन तंत्र उसी प्रकार खुला रहता है जैसे सूर्य के उदय होते ही कमल का फूल खिल जाता है और सूर्य के अस्त होते ही वो पाचन तंत्र बंद हो जाता है। जिसकी कमी से खाने का पाचन ठीक नहीं हो सकता।

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आया कहां से, कहां है जाना

आया कहां से, कहां है जाना, ढूंढ ले ठिकाना चेतन ढूंढ ले ठिकाना । इक दिन चेतन गोरा तन यह, मिट्टी में मिल जाएगा । कुटुम्ब कबीला पडा रहेगा, कोई बचा ना पायेगा । नहीं चलेगा कोई बहाना…॥ ढूंढ ले ठिकाना…।१। बाहर सुख को खोज रहा है, बनता क्यों दीवाना रे । आतम ही सुख खान है प्यारे, इसको भूल…

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मोह जाल में फंसे हुए हैं, कर्मो ने आ घेरा…

मोह जाल में फँसे हुये हैं कर्मों ने आ घेरा, कैसे तिरेंगे भव-सागर से, तुम बिन कौन है मेरा। भूल हुई क्या हमसे भगवन क्या है दोष हमारा, लिखा विधाता ने किन घड़ियों ऐसा लेख हमारा।। लेख लिखा था शुभ घड़ियों में, शुभ घड़ियां हैं आई। आत्मज्ञान की ज्योति जगा दो भव से पार उतरता…

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मेरी भावना | Meri Bhawan

जिसने रागद्वेष कामादिक जीते सब जग जान लिया। सब जीवों को मोक्षमार्ग का निस्पृह हो उपदेश दिया॥ बुद्ध, वीर, जिन, हरि, हर, ब्रह्मा या उसको स्वाधीन कहो। भक्ति भाव से प्रेरित हो यह चित्त उसी में लीन रहो॥ 1॥ विषयों की आशा नहिं, जिनके साम्य भाव धन रखते हैं। निज पर के हित साधन में जो, निशदिन तत्पर रहते हैं। स्वार्थ त्याग की कठिन तपस्या, बिना खेद जो…

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आत्म कीर्तन

(सहजानन्द वर्णी) हूँ स्वतन्त्र निश्चल निष्काम, ज्ञाता द्रष्टा आतमराम। टेक। मैं वह हूँ जो है भगवान, जो मैं हूँ वह है भगवान। अन्तर यही ऊपरी जान, वे विराग यह राग-वितान॥ १॥ मम स्वरूप है सिद्ध समान, अमित शक्ति-सुख-ज्ञान-निधान। किन्तु आशवश खोया ज्ञान, बना भिखारी निपट अजान॥2 ॥ सुख-दुख-दाता कोई न आन, मोह-राग-रुष दुख की खान।…

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