आचार्य श्री 108 ज्ञान सागर जी महाराज – सराको के राम
आचार्य श्री 108 ज्ञान सागर जी महाराज – सराको के राम | GYAN-SAGAR-JI-MAHARAJ
आचार्य श्री 108 ज्ञान सागर जी महाराज – सराको के राम | GYAN-SAGAR-JI-MAHARAJ
अपनी इन्द्रियों, कषायों और कर्मो को जीतने वाले जिन कहलाते हैं| जिन के उपासक को जैन कहते हैं। जिन के द्वारा कहा गया धर्म जैनधर्म है। जिसके द्वारा यह संसारी आत्मा-परमात्मा बन जाता है, वह धर्म है। अर्थात् सम्यकदर्शन, सम्यकज्ञान और सम्यकचारित्र को धर्म कहा है, क्योंकि रत्नत्रय के माध्यम से ही यह आत्मा- परमात्मा बनती है।
स्नान करके, स्वच्छ वस्त्र (धोती-दुपट्टा अथवा कुर्ता-पायजामा) पहनकर तथा हाथ में धुली हुई अष्ट द्रव्य लेकर, नंगे पैर, नीचे देखकर, जीवों को बचाते हुए, प्रभुदर्शन की तीव्र भावना से मन्दिर जाएं| मन्दिर जी का शिखर दिखने पर नमस्कार करें| मन्दिर के द्वार पर शुद्ध छने जल से दोनों पैर धोने चाहिए|
मन्दिर के दरवाजे में प्रवेश करते ही ॐ जय जय जय, निस्सही निस्सही निस्सही,नमोऽस्तु नमोऽस्तु नमोऽस्तु बोलना चाहिए, फिर मन्दिर जी में लगे घंटे को बजाना चाहिए।
णमोकार मन्त्र | Namokar Mantra णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाणं णमो आइरियाणं णमो उवज्झायाणं णमो लोए सव्व साहूणं यह पंच नमस्कार मन्त्र, पंच परमेष्ठी मंत्र, अनदिमूलमंत्र, अनदिनिधनमंत्र आदि नामों से भी जाना जाता है। इसकी रचना किसी ने नहीं कि, अनादिकाल से चला आ रहा अनादिनिधन मंत्र है। इसे सर्वप्रथम आचार्य पुष्पदंत महाराज ने षट्खंडागम ग्रंथ…
आयुर्वेद के अनुसार सूर्य के निकलने की दशा में पेट में पाचन तंत्र उसी प्रकार खुला रहता है जैसे सूर्य के उदय होते ही कमल का फूल खिल जाता है और सूर्य के अस्त होते ही वो पाचन तंत्र बंद हो जाता है। जिसकी कमी से खाने का पाचन ठीक नहीं हो सकता।
जैन समाज में यह बहुत बड़ी ख़ुशी की बात है कि महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी ने दिगम्बर जैनमुनि,राष्ट्रसंत परंपराचार्यश्री 108 प्रज्ञसागर जी महाराज को राष्ट्रपति भवन मेंआमंत्रण दिया और धार्मिक,आध्यात्मिक एवं सामाजिक विषयों पर चर्चाऐं की।श्री प्रज्ञसागर जी ने जैन धर्म में भगवान महावीर स्वामी के मूलभूत सिद्धान्तों पर प्रकाश डाला। साथ ही…
दिन रात मेरे स्वामी, मैं भावना ये भाऊँ,
देहांत के समय में, तुमको न भूल जाऊँ । टेक।
शत्रु अगर कोई हो, संतुष्ट उनको कर दूँ,
समता का भाव धर कर, सबसे क्षमा कराऊँ ।१।
बड़ागाँव अतिशय बड़ा, बनते बिगड़े काज ।
तीन लोक तीरथ नमहुँ, पार्श्व प्रभु महाराज ।।१।।
आदि-चन्द्र-विमलेश-नमि, पारस-वीरा ध्याय ।
स्याद्वाद जिन-धर्म नमि, सुमति गुरु शिरनाय ।।२।।
जय महावीर दयालु स्वामी, वीर प्रभु तुम जग में नामी ।।३।।
वर्धमान है नाम तुम्हारा, लगे हृदय को प्यारा प्यारा ।।४।।
शांति छवि और मोहनी मूरत, शांत हँसीली सोहनी सूरत ।।५।।
तुमने वेष दिगम्बर धरा, कर्म शत्रु भी तुम से हारा ।।६।।