सादर जय जिनेन्द्र!

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JAIN SYMBOL | JAINDHARM.IN

समाधि-भावना | Samadhi Bhawana

दिन रात मेरे स्वामी, मैं भावना ये भाऊँ,
देहांत के समय में, तुमको न भूल जाऊँ । टेक।
शत्रु अगर कोई हो, संतुष्ट उनको कर दूँ,
समता का भाव धर कर, सबसे क्षमा कराऊँ ।१।

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SHRI PARSHVANATH CHALISA (BARAGAON) / श्री पार्श्वनाथ चालीसा (बड़ागाँव)

बड़ागाँव अतिशय बड़ा, बनते बिगड़े काज ।
तीन लोक तीरथ नमहुँ, पार्श्व प्रभु महाराज ।।१।।

आदि-चन्द्र-विमलेश-नमि, पारस-वीरा ध्याय ।
स्याद्वाद जिन-धर्म नमि, सुमति गुरु शिरनाय ।।२।।

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SHRI MAHAVIR CHALISA CHANDANPUR / श्री महावीर चालीसा (चाँदनपुर)

जय महावीर दयालु स्वामी, वीर प्रभु तुम जग में नामी ।।३।।

वर्धमान है नाम तुम्हारा, लगे हृदय को प्यारा प्यारा ।।४।।

शांति छवि और मोहनी मूरत, शांत हँसीली सोहनी सूरत ।।५।।

तुमने वेष दिगम्बर धरा, कर्म शत्रु भी तुम से हारा ।।६।।

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World Earth Day | विश्व पृथ्वी दिवस

प्लास्टिक हटाओ: अपने जीवन से पॉलीथिन के बैग्स पानी के साथ समुद्र में चले जाते है जिससे समुद्री जीव जंतुओं के जीवन पर खतरे का कारक बन जातें हैं, जिससे पूरा इको सिस्टम ही गड़बड़ा गया है। पॉलीथिन बैग्स के उपयोग से क्षति ■ पॉलीथिन बैग्स के कारण हर साल लाखों जीव जंतुओं की मौत…

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श्री पार्श्वनाथ चालीसा | Parshvanath Chalisa

शीश नवा अरिहंत को, सिद्धन करूँ प्रणाम।
उपाध्याय आचार्य का ले सुखकारी नाम।।
सर्व साधु और सरस्वती, जिन मंदिर सुखकार।
अहिच्छत्र और पार्श्व को, मन मंदिर में धार।।

पारसनाथ जगत हितकारी, हो स्वामी तुम व्रत के धारी।
सुर नर असुर करें तुम सेवा, तुम ही सब देवन के देवा।।

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मेरी भावना | Meri Bhawan

जिसने रागद्वेष कामादिक जीते सब जग जान लिया। सब जीवों को मोक्षमार्ग का निस्पृह हो उपदेश दिया॥ बुद्ध, वीर, जिन, हरि, हर, ब्रह्मा या उसको स्वाधीन कहो। भक्ति भाव से प्रेरित हो यह चित्त उसी में लीन रहो॥ 1॥ विषयों की आशा नहिं, जिनके साम्य भाव धन रखते हैं। निज पर के हित साधन में जो, निशदिन तत्पर रहते हैं। स्वार्थ त्याग की कठिन तपस्या, बिना खेद जो…

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आत्म कीर्तन

(सहजानन्द वर्णी) हूँ स्वतन्त्र निश्चल निष्काम, ज्ञाता द्रष्टा आतमराम। टेक। मैं वह हूँ जो है भगवान, जो मैं हूँ वह है भगवान। अन्तर यही ऊपरी जान, वे विराग यह राग-वितान॥ १॥ मम स्वरूप है सिद्ध समान, अमित शक्ति-सुख-ज्ञान-निधान। किन्तु आशवश खोया ज्ञान, बना भिखारी निपट अजान॥2 ॥ सुख-दुख-दाता कोई न आन, मोह-राग-रुष दुख की खान।…

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