सादर जय जिनेन्द्र!

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आत्म कीर्तन

(सहजानन्द वर्णी) हूँ स्वतन्त्र निश्चल निष्काम, ज्ञाता द्रष्टा आतमराम। टेक। मैं वह हूँ जो है भगवान, जो मैं हूँ वह है भगवान। अन्तर यही ऊपरी जान, वे विराग यह राग-वितान॥ १॥ मम स्वरूप है सिद्ध समान, अमित शक्ति-सुख-ज्ञान-निधान। किन्तु आशवश खोया ज्ञान, बना भिखारी निपट अजान॥2 ॥ सुख-दुख-दाता कोई न आन, मोह-राग-रुष दुख की खान।…

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