आचार्य श्री विद्यासागर जी द्वारा रचित जापानी छंद में हाइकु की व्याख्या
हाइकु नंबर -68
मिट्टी को खोदो
पानी को खोजो नहीं
पानी फूटेगा
हे आत्मन् ! मूल में जल दो फिर फल की प्रतिक्षा करो। पहले मिट्टी को खोदो फिर फूटते पानी के स्रोत को देखो। पहले आत्मरुचि प्रकटाओ तत्त्व ज्ञान का झरना अवश्य प्रकट होगा। एक कदम बढ़ाये बिना मंजिल को पाने की आशा निरर्थक है सही दिशा में बढ़ाये कदम गंतव्य तक अवश्य पहुंचेंगे, यह विश्वास का एहसास ही मंजिल में वास कराता है तत्त्वाभ्यास का कार्य करते जाना है। मिट्टी को खोदते-खोदते एक दिन पानी अवश्य निकलेगा, किन्तु पानी को मिट्टी में खोजते रहेंगे तो पानी कभी नहीं मिलेगा। सम्यक् पुरुषार्थ करना होगा क्योंकि कार्य का नियामक कारण उस समय की योग्यता अनुसार सम्यक् पुरुषार्थ है विकल्प करने से कुछ प्राप्त नहीं होता।
हे आत्मन् ! सब कुछ तेरे भीतर ही है और गहराई से स्पर्श कर, उपयोग को और सूक्ष्म करके स्वयं को जान, निरानंद स्वाद से भरा शांति की शीतलता युक्त आत्मसुख का जल अवश्य प्राप्त होगा। सकारात्मक विचार बना, निराश मत हो कि क्या पता मिट्टी खोदने पर मेहनत बेकार हुई तो क्या होगा, व्यर्थ परिश्रम होगा।
अरे आत्मन् ! जब तुझे स्वयं पर ही विश्वास नहीं है तो पानी पर कैसे विश्वास होगा ? तेरे अंदर अनंत गुण रुपी स्वाभाविक जल के अनंत स्रोत है। अविश्वास की मिट्टी को हटा, विकारों के कंकरों को हटा कषायों की बड़ी-बड़ी चट्टानों को हटा फिर देखना स्वानुभूति के झरने की आवाज सुनाई देगी यह तेरे विश्वास के साथ किए गए अथक पुरुषार्थ का ही तो फल है। हां, लक्ष्य को पाने के लिए प्रयास में पीड़ा का अनुभव न हो इस बात का ध्यान अवश्य रखना है यह पीड़ा लक्ष्य की लगन को मिटा देगी। लक्ष्य की उपेक्षा करते हुए लक्ष्य की प्राप्ति असम्भव है। मंजिल की जितनी लगन है मार्ग की भी उतनी ही लगन लगानी होगी, पानी को पाने की जितनी भावना है मिट्टी को खोदने में भी वही तत्परता लानी होगी।
हे आत्मन् ! सब कुछ तो भावों का खेल है भावों को स्थिरता दो विचलित मत होने दो।
भगवान् होने के पहले ज्ञान नयन चाहिए।
पंछी को उड़ने खुला गगन चाहिए।।
उसी प्रकार अपने जीवन में लक्ष्य के लिए लगन चाहिए आत्मा को खोजो नहीं खो जाओ स्वयं में वह सब मिलेगा जो तुम पाना चाहते हो।
यही गुरुदेव कहते हैं….।
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