आज का दिन बड़ा ही पावन है.
आज का ही वो दिन था जब हमारे दादा गुरु (आचार्य श्री 108 ज्ञान सागर जी) ने बालक विधाधर को मुनि विद्यासागर बनाकर इतिहास रच दिया था.
यह बात है 30 जून 1968 की जब आचार्य श्री ज्ञान सागर जी अजमेर में विराजमान थे. उन्होंने कमेटी को बुलाया और कहा की बालक विद्याधर को मुनि दीक्षा देना है उसकी तैयारी प्रारंभ करो.
आचार्य श्री की बात सुनकर सारी समाज आश्चर्य में पड गयी. सामने तो कोई कुछ बोल नही पाया बाहर जाकर चर्चा करने लगे की मात्रा 21 वर्ष का बालक क्या इतनी कठिन मुनि चर्या का पालन कर सकेगा. साहस करके कमेटी ने पुनः आचार्य श्री के पास पहुँच कर निवेदन किया की आप एक बार पुनः विचार करें की क्या बालक विद्याधर निभा सकेगा इस मुनि चर्या को.

आचार्य श्री ने बड़े सहज भाव से कहा की हीरे की पहचान एक जोहरी ही कर सकता है और विद्याधर तो जैन धर्म का कोहिनूर हीरा है आप घबराये नही सब सही होगा.
कहते हैं की जिस दिन दीक्षा का कार्यक्रम निश्चित किया गया था उस दिन बहुत ही गर्मी थी लेकिन जैसे ही बालक विद्याधर हाथी से उतरकर मंच पर पहुंचे और गुरुवर से निवेदन किया और आचार्य श्री ने आशीर्वाद के रूप में अपनी स्वीकृति प्रदान करी, आकाश में चारो ओर काले काले बदल छाने लगे और जैसे ही बालक विद्याधर ने अपने वस्त्रो का त्याग कर यथाजात निर्ग्रन्थ मुद्रा धारण करी वेसे ही घनघोर वर्षा प्रारम्भ हो गयी.
आचार्य श्री तुरंत कहा की इससे बड़ा अतिशय क्या होगा. यह स्वयं में शुभ संकेत है की भविष्य में विद्याधर द्वारा जैन धर्म की अभूतपूर्व प्रभावना होगी.

जिस तरह एक शिल्पी किसी अनगढ़ पत्थर से व्यर्थ को हटाकर उसमें भगवान को तराशता है, उसी तरह आपके गुरू ने अत्यंत लगन एवं तत्परता से आपको तराशा। जब उन्हें प्रतीत हुआ कि यह प्रस्तर पूर्ण रूप से तराशा जा चुका है, तो उन्होंने इस प्रतिमा को जग के सम्मुख प्रस्तुत करने का विचार किया। आषाढ़ शुक्ल पंचमी 30 जून 1968 को अजमेर की पुण्यभूमि पर आचार्य गुरूवर श्री ज्ञानसागर जी ने आपको दिगम्बरी दीक्षा प्रदान की। आपकी उत्तम पात्रता एवं प्रखर प्रतिभा से प्रभावित होकर आपके गुरू ने आपको अपना गुरू बनाया। हाँ, 22 नवम्बर 1972 को नसीराबाद की पुण्यधारा पर आचार्य श्री ज्ञानसागर जी ने अपना आचार्य पद आपको सौंपकर आपका शिष्यत्व स्वीकार कर, आपके चरणों में अपनी सल्लेखना की भावना व्यक्त की। यह उनकी मृदुता और ऋजुता का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण था। ऐसा गुरूत्व और ऐसा शिष्यत्व इतिहास में दुर्लभ है।
परम पूज्य आचार्य गुरुवर श्री विद्या सागर जी महाराज की जय

आपके पवित्र कर कमलों से अभी तक 130 मुनि दीक्षा, 172 आर्यिका दीक्षा, 56 ऐलक दीक्षा, 64 क्षुल्लक दीक्षा एवं 3 क्षुल्लिका दीक्षा सम्पन्न हो चुकी है। वर्तमान में विराट संघ है। आपकी निर्दोष चर्या से प्रभावित होकर 1000 से अधिक युवा-युवतियाँ आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत ग्रहण करने वाले ये सभी भाई-बहिन उच्च शिक्षित एवं समृद्ध परिवार से हैं। तीर्थंकर प्रकृति के बंध के कारणभूत लोक कल्याण की भावना से अनुप्राणित होकर आपने अपने लोकोपकारी कार्यों हेतु अपनी प्रेरणा व आशीर्वाद प्रदान किया।जैसे जीवदया के क्षेत्र में सम्पूर्ण भारत वर्ष में संचालित गौ शालाएँ, चिकित्सा क्षेत्र में भाग्योदल चिकित्सा सागर, शिक्षा क्षेत्र में-प्रतिभा स्थली ज्ञानोदय विद्यापीठ जबलपुर (म.प्र.) डोंगरगढ़ (छत्तीसगढ़) एवं रामटेक (महाराष्ट्र), शांतिधारा दुग्ध योजना बीना बारहा, पूरी मैत्री, हथकरघा आदि लोक कल्याणकारी संस्थाएँ आपके आशीर्वाद का ही सुफल है।

जय जिनेन्द्र
इंडिया नहीं भारत बोलो
गुरु उपकार दिवस | Guru Upkar Diwas 30 Jun | Vidhya Sagar Ji Deekhsa Jayanti