आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज की पूजा
🌕 गुरु पूजा 🌕
गुरु पूजा का शास्त्र में देवोल्लिखित विधान ।
ब्रम्हा विष्णु महेश से ऊँचा गुरु का स्थान ।।
मुनि विद्यासागर जैसा कोई संत न होगा दूजा ।
मन वच तन से हम करते इन श्रीचरणों की पूजा ।।
ऊँ ह्रूँ शताष्ट आचार्य श्री विद्यासागर मुनीन्द्र अत्र अवतर अवतर संवौषट् ।
अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः
अत्र मम् सन्निहितो भव् भव् वषट् सन्निधिकरणं।।
विद्यासागर सुगुरु ज्ञानसागर में डूबे रहते हैं ।
सागर को जल भेंट करें हम भक्ति इसी को कहते हैं ।।
ऊँ ह्रूँ शताष्ट आचार्य श्री विद्यासागर मुनीन्द्राय जन्म जरा मृत्यु विनासनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।।
मुनिवर शीतल मलय स्वभावी विषना मलय पर होंय प्रभावी ।
मलयागिर सम देह धरें चन्दन को लज्जित करते हैं।
इन जग वंदन मुनिवर को हम चंदन चर्चित करते हैं।।
ऊँ ह्रूँ शताष्ट आचार्य श्री विद्यासागर मुनीन्द्राय चंदनम् निर्वपामीति स्वाहा।।
अक्षत लेकर सब राजा और गुरुओं से साक्षात् करे।
अक्षय पद के दाता पर हम अक्षत की बरसात करें।।
ऊँ ह्रूँ शताष्ट आचार्य श्री विद्यासागर मुनीन्द्राय अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।।
जिनशासन के सम्यक् नेता परम जितेंद्रिय मदन विजेता।पुष्प रूप गुरुदेव हमारे इन भावों को न्याय मिले ।
हम चरणों से दूर न हों यदि पुष्पों की पर्याय मिले ।।
ऊँ ह्रूँ शताष्ट आचार्य श्री विद्यासागर मुनीन्द्राय पुष्पम् निर्वपामीति स्वाहा।।
मन वच तन की शुद्धि लिये पावन नैवेद्य बनाया है ।
ग्रहण करो तो जाने अपना पुण्योदय हो आया है ।।
ऊँ ह्रूँ शताष्ट आचार्य श्री विद्यासागर मुनीन्द्राय नैवैद्यम् निर्वपामीति स्वाहा।।
कोटि सूर्यसम तेज तुम्हारा मोह तिमिर को नाशन हारा।
अंतर्ज्योति से ज्योतित करके दीपक ज्योति जलाते हैं।
प्रेम विवश होकर हम बालक सूर्य को दीप दिखाते हैं।।
ऊँ ह्रूँ शताष्ट आचार्य श्री विद्यासागर मुनीन्द्राय दीपम् निर्वपामीति स्वाहा।।
जलकर धूप सामान जिन्होंने आठों कर्म जलाये हैं।
स्वार्थ विवश इनकी सेवा में धूप लिये हम आये हैं।।
ऊँ ह्रूँ शताष्ट आचार्य श्री विद्यासागर मुनीन्द्राय धूपम् निर्वपामीति स्वाहा।।
हमको तुम यूं लगते गुरुवर
फल से ज्यों परिपूर्ण हो तरुवर।
क्लांत पथिक हम भव् मरुस्थल के हम पर करुणा भाव धरो।
फल छाया अरु आश्रय देकर फल की आशा सफल करो।।
ओम् ह्रूँ शताष्ट आचार्य श्री विद्यासागर मुनीन्द्राय फलम् निर्वपामीति स्वाहा।।
सेवा में सादर धरें जल चंदन पुष्पादि।
अष्ट द्रव्य पूजन कियो मेटो कष्ट अनादि।।
ओम् ह्रूँ शताष्ट आचार्य श्री विद्यासागर मुनीन्द्राय अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।।
🌕जयमाल🌕
बेलगाँव कर्नाटक प्रान्ते जन्म सदलगा कुल संभ्रांते।।
विद्यासागर जय मुनिराज धर्म धुरंधर जय मुनिराज।
नमन मलप्पा गुरु के ताता,वंदन योग्य श्रीमती माता।।विद्यासागर….
मूल नाम विद्याधर पाया नाम सार्थक कर दिखलाया।।विद्यासागर..
मिले शान्तिसागर मुनिराई आत्म प्रेरणा उनसे पायी।।विद्यासागर…
सुगुरु ज्ञानसागर महाज्ञानी गुरुवर के गुरुवर वरदानी।।विद्यासागर..
जैनस्तवन स्वयं नित गाये घरभर को कंठस्थ कराये।विद्यासागर…
बिच्छू ने डँसण किया नैन न लाये नीर।
सोचा मुनि बनकर अभी सहनी कितनी पीर।।
शुभ दिन लाई दीर्घ प्रतीक्षा ज्ञानसागर जी से ली मुनि दीक्षा।।विद्यासागर…
अमर अमरकंटक कर डाला मंदिर भव्यरु मूर्ति विशाला।।विद्यासागर…
नन्दीश्वर मढ़िया में निर्मित सागर भाग्योदय स्थापित।।विद्यासागर…
मुखर मूकमाटी हुई ऎसे सबकुछ बोल रही हो जैसे।।विद्यासागर…
नेमावर में हो रहा सिद्धोदय निर्माण।
पँचयती तिहूँकाल के चौबीसों भगवान।।
गुरु अनन्त गुरु सुजस अनन्ता संतुपवन के सरस बसन्ता ।।विद्यासागर….
ज्ञान-दिवाकर-जय गुरुदेव
वचन सुधाकर जय गुरुदेव
धर्म के रथ पर जय गुरुदेव
कर्म के पथ पर जय गुरुदेव
सद्गुण आगर जय गुरुदेव
मुक्ति के नागर जय गुरुदेव
धर्म धुरंधर जय गुरुदेव
विद्यासागर जय गुरुदेव
विद्यासागर जय मुनिराज
धर्म धुरंधर जय मुनिराज
वीतराग निर्ग्रन्थ मुनि गुरुवर तुम सर्वज्ञ
कैसे जयमाला कहें हम जड़मति स्वल्पज्ञ।।
ओम् ह्रूँ शताष्ट आचार्य श्री विद्यासागर मुनीन्द्राय अनर्घ्य पद प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति
स्वाहा।।
तरणि विद्यासागर गुरो तारो मुझे ऋषीश
करुणा कर करुणा करो कर से दो आशीष।।
यही प्रार्थना आप से अनुनय से कर जोर।
पल-पल पग-पग बढ़ चलूँ मोक्ष महल की ओर।।
।।इत्याशीर्वादः।।