देवदर्शन विधि : स्नान करके, स्वच्छ वस्त्र (धोती-दुपट्टा अथवा कुर्ता-पायजामा) पहनकर तथा हाथ में धुली हुई अष्ट द्रव्य लेकर, नंगे पैर, नीचे देखकर, जीवों को बचाते हुए, प्रभुदर्शन की तीव्र भावना से मन्दिर जाएं| मन्दिर जी का शिखर दिखने पर नमस्कार करें| मन्दिर के द्वार पर शुद्ध छने जल से दोनों पैर धोने चाहिए|
मन्दिर के दरवाजे में प्रवेश करते ही ॐ जय जय जय, निस्सही निस्सही निस्सही,नमोऽस्तु नमोऽस्तु नमोऽस्तु बोलना चाहिए, फिर मन्दिर जी में लगे घंटे को बजाना चाहिए।
इसके पश्चात् भगवान के सामने जाते ही हाथ जोड़कर सिर झुकावें, एवं बैठकर गवासन से तीन बार नमस्कार कर तथा खड़े होकर णमोकार मंत्र बोलकर स्तुति,पाठ बोलकर भगवान् की मूर्ति को एकटक होकर देखकर पुञ्ज बंधी मुट्ठी से अंगूठा भीतर करके अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु, ऐसे पाँच पदों को बोलते हुए बीच में, ऊपर, दाहिने, नीचे, बाएँ तरफ ऐसे पाँच पुञ्ज चढ़ावें।
फिर जमीन पर गवासन से बैठकर, जुड़े हुए हाथों को तथा मस्तक को जमीन से लगावें तीन बार नमस्कार कर तत्पश्चात् हाथ जोड़कर खड़े हो जावें और स्तुति आदि पढ़ते हुए अपनी बाई ओर से चलकर वेदी की तीन परिक्रमा करें। तदनन्तर स्तोत्र पूरा होने पर बैठकर गवासन से तीन बार नमस्कार करें।
दर्शन कर लेने के बाद अपने दाहिने हाथ की मध्यमा और अनामिका अर्जुलियों को गंधोदक के पास रखे शुद्ध जल से शुद्ध कर लेने पर अर्जुलियों से गंधोदक लेकर उत्तमाङ्ग पर लगाएं फिर गंधोदक वाली अर्जुलियों को पास में रखे जल में धो लेवें। गंधोदक लेते समय निम्न पंक्तियाँ बोलें –
निर्मलं निर्मलीकरण, पवित्र पाप नाशनम्।
जिन गंधोदकं वंदे, अष्टकर्म विनाशनम्॥
इसके पश्चात् नौ बार णमोकार मंत्र पढ़ते हुए कायोत्सर्ग करें। फिर जिनवाणी के समक्ष ‘प्रथमं करण चरण द्रव्यं नम:।’ ऐसा बोलते हुए चार पुञ्ज चढ़ावें। तथा गुरु के समक्ष ‘सम्यक् दर्शन-सम्यक् ज्ञान-सम्यक् चारित्रेभ्यो नम:’, ऐसा बोलकर तीन पुञ्ज चढ़ावें। फिर भगवान् को पीठ न पड़े ऐसे विनय पूर्वक अस्सहि, अस्सहि, अस्सहि बोलते हुए मन्दिर से बाहर निकलें।
उपरोक्त देवदर्शन विधि अपनाईए और धर्म को सही तरीके से कर पूर्ण फल पाइए।