णमोकार मन्त्र | Namokar Mantra
णमो अरिहंताणं
णमो सिद्धाणं
णमो आइरियाणं
णमो उवज्झायाणं
णमो लोए सव्व साहूणं
यह पंच नमस्कार मन्त्र, पंच परमेष्ठी मंत्र, अनदिमूलमंत्र, अनदिनिधनमंत्र आदि नामों से भी जाना जाता है।
इसकी रचना किसी ने नहीं कि, अनादिकाल से चला आ रहा अनादिनिधन मंत्र है। इसे सर्वप्रथम आचार्य पुष्पदंत महाराज ने षट्खंडागम ग्रंथ के मंगलाचरण के रूप में प्राकृत भाषा मे लिपिबद्ध किया था।
यह मंत्र कहीं भी पढ़ने योग्य है, परन्तु पवित्र स्थानों में ही उच्चारण करना चाहिए। अपवित्र स्थानों में मात्र मन में ही स्मरण चाहिए।
एसो पंच णमोयारो, सव्व पावप्पणासणो ।
मंगलाणं च सव्वेसिं, पढमं होई मंगलं ।।
यह पंच नमस्कार मंत्र सब पापों को नष्ट करने वाला है और सब मंगलों में पहला मंगल है।
यद्दपि सिद्ध परमेष्ठी सर्वश्रेष्ठ है, परन्तु हम सबको कल्याण का मार्ग अरिहंत परमेष्ठी बताते हैं। अतः अरिहंत परमेष्ठी को सर्वप्रथम नमस्कार किया गया है।
अरिहंत परमेष्ठी केवलज्ञान से मोक्ष के बीच की वो अवस्था है, जब 4 मुख्य कर्म(घातिया) नष्ट हो जातें है तथा केवलज्ञान के बाद भगवान उपदेश देते है.