अलौकिक साधना वाले विलक्षण संत थे आचार्य श्री विद्यानंदजी मुनिराज
-दि.22 अप्रैल को 100 वीं जन्म जयन्ती!
श्वेतपिच्छाचार्य आचार्य श्री विद्यानंदजी मुनिराज प्रमुख विचारक, दार्शनिक, संगीतकार, संपादक, संरक्षक, महान् तपोधनी, ओजस्वी वक्ता, प्रखर लेखक, शांतमूर्ति, परोपकारी संत थे। जिन्होंने अपना समस्त जीवन जैन धर्म द्वारा बताए गए अहिंसा, अनेकांत व अपरिग्रह के मार्ग को समझने व समझाने में समर्पित किया। जिन्होंने भगवान महावीर के सिद्धान्तों को जीवन-दर्शन की भूमिका पर जीकर अपनी संत-चेतना को सम्पूर्ण मानवता के परमार्थ एवं कल्याण में स्वयं को समर्पित करके अपनी साधना, सृजना, सेवा, एवं समर्पण को सार्थक पहचान दी है। वे आचार्यरत्न श्री देशभूषणजी महाराज के परम शिष्य थे और उन्हीं की प्रेरणा एवम् मार्गदर्शन से कई कन्नड भाषा में लिखे हुए प्राचीन ग्रंथों का सरल हिन्दी व संस्कृत में अनुवाद किया। उनका नाम न केवल जैन साहित्य में अपितु सम्पूर्ण हिन्दी साहित्य में एक प्रमुख हस्ताक्षर के रूप में प्रतिष्ठित हैं।
कर्नाटक के सीमांत ग्राम शेडवाल में 22 अप्रैल, 1925 को एक शिशु का जन्म हुआ। शेडवाल ग्राम के वासियों व शिशु की माता सरस्वती देवी और पिता कल्लप्पा उपाध्ये ने कल्पना भी न की होगी कि एक भावी निग्र्रंथ सारस्वत का जन्म हुआ है। यही शिशु सुरेन्द्र कालांतर में आगे चलकर अलौकिक दिव्यपुरुष मुनि विद्यानंद बने। द्वितीय विश्वयुद्ध के समय जब संपूर्ण विश्व कलह, क्लेश, अज्ञान, हिंसा और अशांति की समस्याओं से जूझ रहा था, ठीक उसी समय उनके आध्यात्मिक नेतृत्व में मानवता व विश्वधर्म अहिंसा की पताका लेकर आगे बढ़ा। कन्नौज (उत्तर प्रदेश) में स्थित दिगम्बर जैन ‘मुनि विद्यानन्द शोधपीठ’ की स्थापना उन्हीं के नाम पर की गई है जोकि आज भी प्राचीन भाषाओं से सम्बन्धित शोध का अनूठा संस्थान है। सुप्रसिद्ध साहित्यकार एवम् विद्वान साहू शांतिप्रसाद जैन और डॉ. जयकुमारजी उपाध्याय उन्हीं के परम शिष्यों में से है। दिल्ली स्थित ‘अहिंसा स्थल’ एवं कुंदकुंद भारती की स्थापना भी उन्हीं के करकमलों द्वारा की गई है। ऐसे अनेक संस्थानों एवं उपक्रमों के आप प्रेरक रहे हैं।
उन की विदूषी शिष्या गणनी आर्यिकारत्न प्रज्ञमती माताजी जिन्होने अपनी पूरी धार्मिक शिक्षा आचार्य विद्धानन्द जी के सानिध्य में ली है, उन्हीं की तरह चलती फिरती जिनवाणी कहलातीं हैं!
आज के अवसर पर पूज्य आचार्य श्री 108 विद्यानंद जी महाराज का स्मरण कर शत शत वन्दन!